भरे बाज़ार शादीशुदा औरत की गांड में अंगुल चुभोई!!!


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शहर में शादियों का सीजन चल रहा था. ऐसे अवसरों पर लोगबाग, खास कर औरतें व लडकियां बहुत बन ठन कर निकलती हैं. हम लोगों का एक ग्रुप है जो ऐसे अवसरों पर उनसे छेड़छाड़ का शौकीन है यह काम हम जहां रहते हैं उस इलाके में नहीं करते हैं. हम एक महानगर में रहते हैं और दूर बसी कोलोनी में इस काम को अंजाम देते हैं. वैसे पुब्लिच्क बसों में तो लडकियां हम रोज ही छेड़ते हैं. पर यह जो हमने किया वह हिम्मत का काम था.

जिस जगह शादी थी वह घर बाज़ार के बीचोबीच था. कुछ दिनों से एक सुन्दर कन्या के विवाह का कार्यक्रम चल रहा था और हम दो दिनों से इस पर नजर रखे हुए थे. आखिर में हमने एक २७ वर्ष की रमणी को चुना. यह अपनी सात साल की बच्ची के साथ इस घर में आती जाती ती. यह रमणी सुन्दर होने के साथ सेक्सी भी थी, और इसकी बच्ची बड़ी मासूम थी. मासूम होने के साथ वह भी सेक्सी थी. दोनों ने ही चटक सिंगार कर रखा था, गहनों से लड़ी हुई थी.

हम तीन चार लोग आगे थे. मैं उनका सरगना था. एहतियात के तौर पर बीस गुंडों का एक दल भी था. हमने इस रमणी और इसकी छोकरी के बारे में सब पता कर लिया था. पूरे रास्ते की रेकी की गई थी, यहाँ तक कि जिस दूकान के आगे छेड़खानी करनी थी उसके दूकानदार को भी धमका दिया था. आसपास की कुछ दूसरी दूकानें भी हमारी नजर में थीं. बाज़ार में भीड़ थी उस दिन पर ज्यादा नहींथी. वह रमणी फूलमालाएं लेकर चली जा रही थी. कसी हुई साड़ी और संकरे बलौज में उसके अंगों के उभार साफ़ साफ़ नजर आ रहे थे. फिगर ३४ २३ ३६ का था. शरीर मादक मांसल था, विशेष कर उसके मम्मे व् गांड हमारी आँखों में चुभ रहे थे. उसकी बच्ची भी एक तंग फ्रॉक में थी, चेहरा प्यारा व नमकीन.

जैसे ही वो हमारी तयशुदा दूकान के सामने से गुजारी मैंने हिम्मत कर के उसकी उठी हुई गांड में अंगुल चुभो मारी. शुरू में उसने नजर अंदाज किया पर मैंने फिर से अंगुली चुभोई, इस बार एक साथ दो. अंगुलियाँ साडी के ऊपर से उसकी सेक्सी गांड में कुछ दूर तक धंसी. तीसरी बार अन्ग्य्ल करने हाथ आगे किया तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया. उसने पीछे सर कर के देखा तो रेंज हाथों मैं पाया गया. वह क्रोध में बोली – ये क्या कर रहे है आप? आवाज जोर से की तो दो चार राह चलतों ने भी देखा पर कुछ कहा नहीं. मैंने अपना हाथ आगे कर फिर एक अंगुली उसकी गंद में गुसेड दी. वह दुबारा क्रोध में उफान पड़ी. चिल्लाई – यह क्या कर रहे हैं अप? शर्म नहीं आती?? मैंने कहा – क्या कर रहा हूँ मैं, दीदी? वह और जोर से चिल्लाई – मेरी गांड में अंगुली क्यों की??? मैं निहायत बेशर्मी से बोला – दीदी, तुम्हारी गांड ही ऐसी है कि अंगुल करने को मन ललचा गया. उसने फिर ह्गुस्सा झाडा – दीदी दीदी कहते हो और दीदी की गांड में अंगुल करते हो??? इस पर भीड़ इकट्ठी हो गई मगर उसमें मेरे आदमी ही थे. एक अजनबी बुद्धा भी यह देख रहा था. उसने उस रमणी का हाथ थाम कर कहा – कसी हुई साडी पहन खुद गांड मटकाती हो तो शोहदे छेड़ेंगे ही, बिटिया!!! वह तिलमिला गई.

मेरे खेले खाए गुंडे आ गए थे. भीड़ थी पर यह मज़ा ले कर देखने वाले तमाशाइयों की भीड़ थी. मेरी हिम्मत बढ़ी, और मैंने फर से अपना काम किया. इस बार उसकी पूरी गदराई गांड को दबा के सहलाया. फिर उसके सामने आ मम्मे छेड़े, रस पूर्वक बोला मैं – दीदी, क्या मांसल सेक्सी मम्मे हैं तुन्हारे. मैं छेड़ता रा और कोई कुछ नहीं बोला. एरा हाथ उसकी जांघों पर फिर और मैंने हिम्मत करके वहां अंगुली चुभा मारी जहां उसकी चूत थी, अहा. साथ ही उसकी बच्ची के माल पर भी हाथ फिराया.

इस बीच कुछ औरतें इकट्ठी हो गई जिनको मैं पहचानता नहीं था. देखतेदेखते महिला पुलिस आ गई. जो आई वह एक कांस्टेबल थी. मस्त जवान लड़की थी. उसने मुझे समझाने की कोशिश की मगर मैं उसकी भड़कती ड्रेस देख खुद बहुत बदतमीजी से बोला – वाह, पुलिस औरतें भी क्या माल होती हैं, मैडम, आपकी गांड भी कम सेक्सी नहीं है. उसने मुझे घूर और बोली – ये गांड गांड क्या कहते हो? मैंने जवाब दिया जो सही है वो कहता हूँ, आपके नितम्ब बलशाली हैं, मेरा महिला पुलिस को सलाम.

बहुत हल्ला मचा पर हुआ कुछ नहीं. बात आई गई हो गई.

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